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साभार-गूगल
26 जून केवल एक तारीख भर नहीं है बल्कि तोकतंत्र के समर्थक और तोकतंत्र को भंग करने की कुचेष्टा रखने वालों के चेहरों को बेनकाब होते देखने का दिन भी है। लोगों पर ज़्यदतियाँ हुई,यातनाएं दी गई लेकिन फिर भी आंदोलनकारी लोकतंत्र की रक्षा के लिए डंटे रहे। और अंततः देश को आपातकाल की त्राषदि से उबार पाने में कामयाब हो गए। ऐसे तो ये इस परिघटना से समूचा भारत प्रभावित हुआ लेकिन इस परिघटना के सहारे हम उत्तर प्रदेश की राजनीति की भी पड़ताल कर सकते हैं।
आपातकाल और उत्तर प्रदेश का खास संबंद्ध इसलिए है क्योंकि इसी आंदोलन के परिणाम स्वरूप देश की राजनीति में मुलायम सिंह जैसे व्यक्तित्व का जन्म हुआ। उन्होंने आपातकाल के दर्द को सहा भी और लोहा भी लिया ताकि लोकतंत्र ज़िदा रहे।
आपातकाल के वक्त लाखों लोगों को रासुका,मीसा और डी.आई.आर के तहत सलाखों के पीछे डाल दिया गया,जिस प्रकार स्वतंत्रता संग्राम सेनानी अंग्रेजों से लोहा ले रहे थे उसी प्रकार आज़ाद भारत में ये लोकतंत्र सेनानी कांग्रेस सरकार से लोहा ले रहे थे।
इन लोकतंत्र के रक्षकों को लोकतंत्र सेनानी का दर्जा सर्व प्रथम मुलायम सरकार के द्वारा दिया गया ताकि ये परिघटना और ये सम्माननीय सेनानी जन समाज के समक्ष और लोकतंत्र के लिए एक नज़ीर बन सके,इनके अवदानों को भुलाया ना जाए।साथ ही इन सेनानियों के लिए पेंशन की भी व्यवस्था की गई। इसका उल्लेख करना इसलिए ज़रूरी है क्योंकि जब बहुजन समाज पार्टी की सरकार आई जो दावा करती है कि वह अबेंडकर के बताए रास्तों पर चलने वाली है लेकिन जिन लोगों ने संविधान को बचाने के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर किया उन्हीं का पेंशन बंद करने का अक्षम्य अपराध मायावती सरकार ने की,जिस पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी तत्कालीन बसपा सरकार को खरी खोटी सुनाई।
कहने का मतलब ये है कि अब हमको पहचान करने की ज़रूरत है कि कौन लोकतंत्र का सच्चा सिपाही हैं।
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